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पथ प्रदर्शिका बन जाएगी - लेखनी काव्य प्रतियोगिता

पथ प्रदर्शिका बन जाएगी 

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जब घर में रहते दुर्योधन,
और बने सब जन धृतराष्ट्र, 
कौन बचाए अत्याचारों से,
फिर चाहे वो हो मणिपुर,
या हो कच्छ और सौराष्ट्र। 
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सही गलत का भेद नहीं है,
न्याय अन्याय का लेख नहीं है!
समाज ऐसे क्या चल पाएगा!
घिसट घिसट कर रह जाएगा!
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आज नहीं अब कृष्ण आएंगे। 
चीर बढ़ा कर ना बचाएंगे। 
गांधारी अब पट्टी खोलो, 
धृतराष्ट्रों की आँखें खोलो।
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नारी की नारी है दुश्मन, 
आँख पै पट्टी बांधे बैठी,
गांधारी सी करती अनदेखा, 
बीज क्लेश के बो कर बैठी। 
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अपनी बेटी को देती शिक्षा, 
दब ढँक चुप कर रह जाओ,  
विरोध करना ना सिखलाया,
घर बाहर में डर कर जाओ।
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ऐसे ही ज़िंदगी बिता लो, 
आँख में आँसू भर कर रह लो, 
डरी हुई माँ क्या सिखलाये!
दबी हुई माँ क्या सिखलाये।
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तब क्या भविष्य नौनिहालों का। 
कायरता की मूर्ति वे बन जाएंगे।
आज शिवाजी चाहो गर तो, 
जीजाबाई सी माँ घर में चाहिए।  
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सुधरी नहीं जो संताने तो!
फिर से प्रलय होएगी फिर तो!
कायर बलात्कारियों का, 
हश्र बहुत बुरा होगा फिर तो। 
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उसकी लाज डुबोएंगे जो, 
स्त्री काली बन जाएगी, 
दुर्गा बनकर सिर काटेगी। 
उन राक्षसों का विध्वंस करेगी। 
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आँखों में आँसू नहीं होंगे, 
चिनगारी बन तप जाएगी। 
अनुगामिनी रही थी अब तक, 
पथ प्रदर्शिका बन जाएगी!
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पथ प्रदर्शिका बन जाएगी!
शोभा शर्मा , छतरपुर म।प्र। 
#दैनिक काव्य प्रतियोगिता 

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3 Comments

बेहतरीन,,,, जागृति करती हुई रचना

Reply

Abhinav ji

17-Aug-2023 06:19 AM

Very nice 👍

Reply

Reena yadav

16-Aug-2023 09:23 PM

👍👍

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