जब घर में रहते दुर्योधन,
और बने सब जन धृतराष्ट्र,
कौन बचाए अत्याचारों से,
फिर चाहे वो हो मणिपुर,
या हो कच्छ और सौराष्ट्र।
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सही गलत का भेद नहीं है,
न्याय अन्याय का लेख नहीं है!
समाज ऐसे क्या चल पाएगा!
घिसट घिसट कर रह जाएगा!
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आज नहीं अब कृष्ण आएंगे।
चीर बढ़ा कर ना बचाएंगे।
गांधारी अब पट्टी खोलो,
धृतराष्ट्रों की आँखें खोलो।
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नारी की नारी है दुश्मन,
आँख पै पट्टी बांधे बैठी,
गांधारी सी करती अनदेखा,
बीज क्लेश के बो कर बैठी।
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अपनी बेटी को देती शिक्षा,
दब ढँक चुप कर रह जाओ,
विरोध करना ना सिखलाया,
घर बाहर में डर कर जाओ।
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ऐसे ही ज़िंदगी बिता लो,
आँख में आँसू भर कर रह लो,
डरी हुई माँ क्या सिखलाये!
दबी हुई माँ क्या सिखलाये।
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तब क्या भविष्य नौनिहालों का।
कायरता की मूर्ति वे बन जाएंगे।
आज शिवाजी चाहो गर तो,
जीजाबाई सी माँ घर में चाहिए।
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सुधरी नहीं जो संताने तो!
फिर से प्रलय होएगी फिर तो!
कायर बलात्कारियों का,
हश्र बहुत बुरा होगा फिर तो।
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उसकी लाज डुबोएंगे जो,
स्त्री काली बन जाएगी,
दुर्गा बनकर सिर काटेगी।
उन राक्षसों का विध्वंस करेगी।
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आँखों में आँसू नहीं होंगे,
चिनगारी बन तप जाएगी।
अनुगामिनी रही थी अब तक,
पथ प्रदर्शिका बन जाएगी!
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पथ प्रदर्शिका बन जाएगी!
शोभा शर्मा , छतरपुर म।प्र।
#दैनिक काव्य प्रतियोगिता
Shashank मणि Yadava 'सनम'
17-Aug-2023 08:41 AM
बेहतरीन,,,, जागृति करती हुई रचना
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Abhinav ji
17-Aug-2023 06:19 AM
Very nice 👍
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Reena yadav
16-Aug-2023 09:23 PM
👍👍
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